मंदिर विकास कार्य एवं सौन्दर्य करन यात्री की सुविधार्त हेतु आप एक सहयोगी बने
गौ सेवा मुख जीवो की सेवा हेतु एक परोपकारी व्यक्ति होने का परिचय दे
मंदिर की व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु दानदाता बने।
गरीब असहाय एवं मुख जीवो की सेवा हेतु संगठित हो
||ॐ||
||श्री जानकी वल्लभो विजयते ||
हे नाथ ! आप अखंड ब्रमांड के प्रथम नायक है,अप्रमेय बल बुद्धि व समर्थ विद्वता के स्वामी है, अष्ट सीधी और नो निधि के दाता है, मैं भला आपको क्या दे सकता हूँ ||
अप्रेमय अंतर्मन की श्रद्धा से यह तुच्छ भेंट आपके श्री चरणों मे अर्पित है, इसे स्वीकार करके मुझे दीन को आपका कृपा पात्र बनने का सौभाग्य प्रदान कीजियेगा प्रभु ।।
||ॐ||
||श्री जानकी वल्लभो विजयते ||
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ||
मैं अतुल बल धाम को नमन करता हूँ,
सोने के पहाड़ जैसा सुडौल शरीर वाला व्यक्ति,
जो ज्ञान के रूप में, दानवों रूपी जंगल को नष्ट कर देता है,
सभी गुणों की सम्पदा, वानरस्वामी,
श्री रघुनाथ जी के प्रिये भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं |
सोइ बिजई बिनई गुन सागर। तासु सुजसु त्रैलोक उजागर॥
प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू॥
सेवितव्यो महावृक्ष: फ़लच्छाया समन्वित:।
यदि देवाद फलं नास्ति,छाया केन निवार्यते।।
एक विशाल वृक्ष की सेवा करनी चाहिए। क्योंकि वह फल और छाया से युक्त होता है। यदि किसी दुर्भाग्य से फल नहीं देता तो उसकी छाया कोई नहीं रोक सकता है।
लोके यशः परत्रापि फलमुत्तमदानतः।
भवतीति परिज्ञाय धनं दीनाय दीयताम्।।
दिए गए दान का फल इस लोक में यश और मृत्यु के बाद उत्तम लोकों की प्राप्ति है। इसलिए दीनों के निमित्त दान करना चाहिए।
रामलक्ष्मणौ सीता च सुग्रीवो हनुमान् कपिः।
पञ्चैतान स्मरतो नित्यं महाबाधा प्रमुच्यते।।
राम, लक्ष्मण, सीता, सुग्रीव और हनुमान इन पांचों का प्रतिदिन स्मरण करने वाले की बड़ी से बड़ी बाधा का नाश हो जाता है।